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कविता

दूब

शमशेर बहादुर सिंह


मोटी, धुली लॉन की दूब,
       साफ मखमल की कालीन।
ठंडी धुली सुनहरी धूप।

 

हलकी मीठी चा-सा दिन,
मीठी चुस्‍की-सी बातें,
मुलायम बाँहों-सा अपनाव।

 

पलकों पर हौले-हौले
तुम्‍हारे फूल-से पाँव
      मानो भूल कर पड़ते
      हृदय के सपनों पर मेरे!

 

अकेला हूँ, आओ!
[1945]

 

 


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