मोटी, धुली लॉन की दूब, साफ मखमल की कालीन। ठंडी धुली सुनहरी धूप।
हलकी मीठी चा-सा दिन, मीठी चुस्की-सी बातें, मुलायम बाँहों-सा अपनाव।
पलकों पर हौले-हौले तुम्हारे फूल-से पाँव मानो भूल कर पड़ते हृदय के सपनों पर मेरे!
अकेला हूँ, आओ! [1945]
हिंदी समय में शमशेर बहादुर सिंह की रचनाएँ
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